📰 मध्य प्रदेश में बड़ा बदलाव : अब तीन बच्चों वाले भी पाएंगे सरकारी नौकरी का अधिकार
24 साल बाद खत्म होगी दो बच्चों की शर्त, कैबिनेट में जल्द आएगा प्रस्ताव

अब 4 थी जीवित संतान होने पर जाएगी नौकरी।
- सन् 2001 में परिवार नियोजन को ध्यान में रखते हुए यह कानुन बना था की सरकारी कर्मचारी के 2 से अधित जीवित बच्चे होने पर नौकरी समाप्त होगी।
- आने वाले नए संशोधन के अनुसार अब 3 बच्चो से अधिक होने पर जाएगी नौकरी।
- नौकरी के बाद 3 से अधिक जीवित संतान होने पर भी नौकरी गवानी होगी।
🔹 पहले भी आए कई मामले
मध्यप्रदेश में जून 2023 में ऐसा ही एक मामला सामने आया था,
जब रहमत बानो मंसूरी, जो सरकारी शिक्षिका थीं, को तीसरी संतान होने पर 7 जून 2023 को पद से हटा दिया गया।
उन्हें हटाने का कारण मध्यप्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम 1961 की धारा 6 का उल्लंघन बताया गया।
रहमत बानो के खिलाफ शिकायत मध्यप्रदेश शिक्षक कांग्रेस ने वर्ष 2020 में दर्ज कराई थी।
नौकरी से हटाए जाने के बाद रहमत आर्थिक संकट में आ गईं और उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अब वे अपने ब्लॉक के 34 अन्य शिक्षकों की सूची भी लगा रही हैं, जिनके तीन या अधिक बच्चे हैं और जो इसी नियम के दायरे में आते हैं।
🔹 एक हजार से अधिक शिक्षकों की नौकरी पर असर
रहमत बानो प्रकरण के बाद अन्य विभागों में भी ऐसे मामलों की जांच शुरू हो गई थी।
बताया जा रहा है कि सिर्फ स्कूल शिक्षा विभाग में ही 1000 से अधिक शिक्षक ऐसे पाए गए हैं जिनके तीन या अधिक बच्चे हैं।
इन पर कार्रवाई की प्रक्रिया उस समय शुरू की गई थी।
🔹 विदिशा में कारण बताओ नोटिस का मामला
एक साल पहले विदिशा जिले में 955 शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे।
इन शिक्षकों के तीन या अधिक बच्चे थे।
मामला इतना बड़ा था कि विधानसभा में भी इस पर सवाल उठे।
कई शिक्षकों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए अलग-अलग तर्क दिए —
- किसी ने लिखा कि “ऑपरेशन फेल हो गया था।”
- तो किसी ने कहा कि “तीसरा बच्चा गोद दिया जा चुका है।”
यह पूरा घटनाक्रम उस समय शिक्षा विभाग में बड़ी हलचल का कारण बना था।
🔹 सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण
हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि
“देश में परिवारों को तीन बच्चे होने चाहिए ताकि जनसंख्या संतुलन बना रहे।”
उनके इस बयान के बाद से ही सरकार ने इस दिशा में नीति परिवर्तन पर विचार शुरू किया था।
अक्टूबर 2025 (दैनिक भास्कर रिपोर्ट)
मध्यप्रदेश सरकार अब एक ऐतिहासिक निर्णय लेने जा रही है। वर्ष 2001 में लागू की गई दो बच्चों की शर्त को हटाने की तैयारी चल रही है। इस नियम के अनुसार अब तक तीन या अधिक बच्चों वाले उम्मीदवार सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माने जाते थे, लेकिन अब यह स्थिति बदलने जा रही है।य
राज्य सरकार शीघ्र ही कैबिनेट में प्रस्ताव लाने वाली है, जिसके बाद यह 24 साल पुरानी पाबंदी समाप्त हो जाएगी। इसका अर्थ यह है कि मप्र में सरकारी नौकरी के लिए अब तीन बच्चों वाले अभ्यर्थी भी पात्र होंगे।

📌 पृष्ठभूमि : 26 जनवरी 2001 से लागू थी दो बच्चों की शर्त
मप्र में यह नियम 26 जनवरी 2001 से लागू हुआ था। तब कहा गया था कि जिस व्यक्ति के दो से अधिक संतानें हैं, वह सरकारी नौकरी, पंचायत चुनाव या सरकारी योजनाओं के कुछ लाभों के लिए अयोग्य होगा।
इस नियम का उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा देना था।
हालांकि, पिछले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है, और अब नीति निर्माताओं का मानना है कि यह शर्त अप्रासंगिक हो चुकी है।
🧾 क्या बदल जाएगा इस फैसले के बाद?
👉 तीसरी संतान वाले अभ्यर्थी अब
- सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकेंगे।
- प्रमोशन और पदोन्नति में भी भागीदार बन सकेंगे।
- पंचायत और शहरी निकाय चुनावों में भी उम्मीदवार बन पाएंगे।
यह बदलाव शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, शिक्षक भर्ती जैसी सभी सरकारी सेवाओं पर लागू होगा।
🧩 क्यों हटाई जा रही है यह शर्त?
राज्य सरकार के उच्च सूत्रों के अनुसार –
- जनसंख्या नियंत्रण अब पहले जैसी चुनौती नहीं रही।
- मध्यप्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर में स्थिरता आ गई है।
- अन्य राज्यों — जैसे छत्तीसगढ़ (2016) और राजस्थान (2017) — ने यह शर्त पहले ही हटा दी थी।
- सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों में बदलाव के कारण अब यह पाबंदी समाज के एक हिस्से के लिए भेदभावपूर्ण लगने लगी थी।
🧮 देश में जनसंख्या वृद्धि दर (NFHS-5 रिपोर्ट अनुसार)
- भारत औसतन – 2.0
- मध्यप्रदेश – 2.1
- राजस्थान – 2.1
- छत्तीसगढ़ – 1.9
- बिहार – 3.0 (सबसे अधिक)
- केरल – 1.6 (सबसे कम)
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश में जनसंख्या अब नियंत्रित स्तर पर है, इसलिए दो बच्चों की शर्त को हटाने का निर्णय उचित माना जा रहा है।
💬 समाज में मिली-जुली प्रतिक्रिया
कई सामाजिक संगठनों और सरकारी कर्मचारियों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह कदम मानव अधिकार और समान अवसर की भावना को मजबूत करेगा।
वहीं, कुछ वर्गों ने इसे जनसंख्या नियंत्रण नीति के लिए खतरा बताया है, उनका तर्क है कि यह निर्णय भविष्य में जनसंख्या वृद्धि को फिर से बढ़ा सकता है।
🗣️ प्रमुख बयान
पूर्व में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था —
“भारत में कम से कम तीन बच्चों वाले परिवार को बढ़ावा मिलना चाहिए ताकि समाज में संतुलन बना रहे।”

📜 मध्यप्रदेश में “दो बच्चों वाला नियम” कब और क्यों लागू किया गया था?
🗓️ नियम कब लागू हुआ था?
➡️ 26 जनवरी 2001 को मध्यप्रदेश सरकार ने “दो बच्चों की नीति (Two-Child Norm)” लागू की थी।
यह नियम उसी दिन से प्रभावी हुआ और तब से यह सरकारी नौकरियों, पंचायत चुनावों और कई सरकारी योजनाओं से जुड़ा हुआ था।
⚖️ नियम के तहत क्या प्रावधान था?
इस नीति के अनुसार —
- जिस व्यक्ति की दो से अधिक संतानें (यानि तीसरा बच्चा जन्म लेने के बाद) होंगी, वह व्यक्ति —
- सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकेगा।
- पंचायत चुनाव (सरपंच, पार्षद, जनपद सदस्य आदि) नहीं लड़ सकेगा।
- सरकारी योजनाओं और पदोन्नतियों (Promotion) के लिए भी अयोग्य माना जाएगा।
🎯 इस नीति को लागू करने का उद्देश्य क्या था?
2001 में यह नीति लागू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य था —
- जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना।
- उस समय मध्यप्रदेश की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही थी।
- जनसंख्या वृद्धि दर 2.9 से अधिक थी।
- परिवार नियोजन को प्रोत्साहित करना।
- सरकार चाहती थी कि लोग “छोटा परिवार – सुखी परिवार” के संदेश को अपनाएं।
- शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर दबाव कम करना।
- तेजी से बढ़ती आबादी के कारण राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार सेवाओं पर भारी बोझ था।
📍 यह नीति किन क्षेत्रों में लागू की गई थी?
- सरकारी भर्ती और नियुक्तियों में।
- पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों में।
- कई विभागीय पदोन्नति नियमों में।
📊 इसके बाद क्या प्रभाव पड़ा?
- बहुत से योग्य उम्मीदवार सिर्फ तीसरी संतान होने की वजह से सरकारी नौकरी से वंचित रह गए।
- कई पंचायत प्रतिनिधियों को चुनाव बाद अयोग्य घोषित कर पद से हटाया गया।
- समाज के गरीब वर्ग और ग्रामीण परिवारों को इसका सबसे अधिक नुकसान हुआ, क्योंकि वहाँ अधिक संतानें सामान्य बात मानी जाती थीं।
🧮 राष्ट्रीय स्तर पर यह नीति कहाँ-कहाँ लागू थी?
2000 के दशक की शुरुआत में भारत के कई राज्यों ने यह नीति अपनाई थी —
- मध्यप्रदेश (2001)
- राजस्थान (2001)
- छत्तीसगढ़ (2002)
- हरियाणा, ओडिशा, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों में भी कुछ रूपों में लागू थी।
लेकिन समय के साथ, अधिकांश राज्यों ने इसे जनसंख्या स्थिरता के कारण हटा दिया।
- छत्तीसगढ़ ने 2016 में हटाया।
- राजस्थान ने 2017 में हटाया।
अब मध्यप्रदेश भी 2025 में इसे खत्म करने जा रहा है।
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