सरकार के 27% आरक्षण कानून और अदालत का सवाल
5 दिसंबर 2024 को, भोपाल से आई एक खबर ने सरकारी भर्ती प्रक्रिया और आरक्षण के मुद्दे को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार से यह सवाल किया है कि वह अपने ही बनाए 27% ओबीसी आरक्षण कानून को लागू क्यों नहीं कर रही है। यह मामला तब चर्चा में आया जब राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए नियम और उनकी व्याख्या अदालत में चुनौती दी गई।
आरक्षण कानून पर सवाल
मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण प्रदान करने का कानून 2019 में बनाया गया था। इसे तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार ने लागू करने के लिए अधिसूचित किया था। यह कानून, OBC समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अधिक प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से बनाया गया था।
कानून लागू क्यों नहीं हुआ?
- अदालती चुनौतियां: इस कानून को लागू करने के तुरंत बाद इसे कई याचिकाओं के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने यह दलील दी कि 27% आरक्षण के साथ आरक्षण का कुल प्रतिशत 50% से अधिक हो जाएगा, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करता है।
- अंतरिम आदेश: 2019 में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी, यह कहते हुए कि जब तक इस मामले पर पूरी तरह सुनवाई नहीं होती, तब तक इसे लागू नहीं किया जा सकता।
- सरकार की निष्क्रियता: वर्तमान में सरकार ने इस मामले को सुलझाने या अदालत से रोक हटाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। अदालत में यह दलील दी गई है कि आरक्षण को लेकर अभी भी कानूनी अड़चनें मौजूद हैं।
वर्तमान स्थिति
अदालत ने हाल ही में इस मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछा है कि वह अपने ही बनाए कानून को लागू क्यों नहीं कर रही है। सरकार का तर्क है कि यह मामला अदालत में लंबित है, और इसे सुलझाने के लिए समय चाहिए।
अदालत में, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि सरकार ने ओबीसी आरक्षण के तहत 27% आरक्षण का प्रावधान किया था, लेकिन इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया। अदालत ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा और कहा कि अपने बनाए कानून को लागू करने में सरकार क्यों असफल हो रही है। याचिका के दौरान, अदालत ने 300 ओबीसी उम्मीदवारों की अनियमित भर्ती का मुद्दा भी उठाया। यह साफ किया गया कि 27% आरक्षण का अनुपालन सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
इसके बावजूद, सरकार इसे लागू नहीं कर रही है। पूर्व में पारित एक अंतरिम आदेश का उल्लेख करते हुए, महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि आरक्षण कानून को कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है, इसलिए इसे लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि अंतिम चरण की प्रक्रिया के बाद, हजारों ओबीसी अभ्यर्थियों को होल्ड कर दिया गया है। महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने यह स्पष्ट किया कि कानूनी चुनौतियों के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है।
शिक्षक भर्ती का रास्ता साफ
तीन वर्षों के इंतजार के बाद, 1484 शिक्षकों के पदों पर भर्ती का मार्ग प्रशस्त हुआ। अदालत ने सरकार को यह निर्देश दिया कि इन भर्तियों की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा किया जाए। इन शिक्षकों को 2021 में नियुक्त किया जाना था, लेकिन विवादों और प्रक्रियागत देरी के कारण मामला अटका हुआ था। अब, अदालत के फैसले से भर्ती प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है।
अस्थायी सेवा और पेंशन का अधिकार
एक अन्य मामले में, अदालत ने अस्थायी कर्मचारियों की पेंशन से जुड़ा महत्वपूर्ण फैसला दिया। अदालत ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी की सेवा छह वर्षों तक जारी रहती है, तो उसे पेंशन का अधिकार मिलेगा, भले ही नियुक्ति अस्थायी हो। यह फैसला उन हजारों कर्मचारियों के लिए राहत भरी खबर है, जो लंबे समय से पेंशन के अधिकार से वंचित थे।
निष्कर्ष
इन फैसलों से यह स्पष्ट है कि सरकारी नीतियों और उनके क्रियान्वयन में अक्सर विरोधाभास सामने आते हैं। चाहे वह आरक्षण का मुद्दा हो या अस्थायी कर्मचारियों का पेंशन का अधिकार, अदालतें इन मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सरकार को चाहिए कि वह अदालत के निर्देशों का पालन करते हुए, अपने नीतिगत ढांचे को और मजबूत करे।